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सिविल कानून
साक्ष्य या पर्याप्त सबूत पेश कर चुके पक्ष की अनुपस्थिति
« »18-Aug-2023
वाई. पी. लेले बनाम महाराष्ट्र राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड और अन्य।
"न्यायालय उस पक्ष की उपस्थिति दर्ज कर सकता है जिसने साक्ष्य या पर्याप्त सबूत पेश किये हैं और न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने में विफल रहा है।"
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि न्यायालय उस पक्ष की उपस्थिति दर्ज़ कर सकता है जिसने सबूतों का एक बड़ा हिस्सा पेश किया है और फिर न्यायालय के समक्ष पेश होने में विफल रहा है।
- उच्चतम न्यायालय ने वाई. पी. लेले बनाम महाराष्ट्र राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड और अन्य के मामले में यह टिप्पणी दी।
पृष्ठभूमि
- महाराष्ट्र राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा मिराज इलेक्ट्रिक सप्लाई कंपनी लिमिटेड और उसके पांच निदेशकों के खिलाफ धन और ब्याज की वसूली के लिये मुकदमा दायर किया गया था।
- प्रतिवादी के वकील ने मामले से अपना नाम वापस ले लिया और गवाहों से प्रति-परीक्षा (cross-examination) भी नहीं की।
- इसके बाद, ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादियों के खिलाफ सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908 (CPC) के आदेश XVII नियम 2 के तहत मुकदमा आगे बढ़ाने का निर्देश दिया और मुकदमे में लागत के साथ एकपक्षीय (ex-parte) फैसला सुनाया।
- प्रतिवादियों ने एकपक्षीय (ex-parte) डिक्री को रद्द करने के लिये सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908 (CPC) के आदेश IX नियम 13 के तहत एक आवेदन दायर किया।
- ट्रायल कोर्ट ने आवेदन स्वीकार कर लिया और मुकदमा बहाल कर दिया।
- इसके बाद वादी ने बॉम्बे हाई कोर्ट (HC) में एक रिट याचिका दायर की, जहां उच्च न्यायालय ने आदेश XVII नियम 2 सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) के तहत स्पष्टीकरण लागू किया और एकपक्षीय डिक्री को वैध माना।
- उच्च न्यायालय के आदेश से व्यथित अपीलकर्ताओं ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
न्यायालय की टिप्पणी (Court’s Observation)
- न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को प्रतिवादियों को एक और वकील नियुक्त करने के लिये नोटिस जारी करना चाहिये था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और एकतरफा कार्रवाई की।
- उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि जहां किसी पक्ष के साक्ष्य या सबूत का एक बड़ा हिस्सा पहले ही दर्ज़ किया जा चुका है और ऐसा पक्ष न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने में विफल रहता है तो न्यायालय को यह मानते हुए आगे बढ़ने की स्वतंत्रता है कि ऐसा पक्ष मौजूद है।
एकपक्षीय डिक्री (Ex-Parte Decree)
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908 (CPC) का आदेश IX किसी पक्ष की उपस्थिति और गैर-उपस्थिति से संबंधित है।
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908 (CPC) के आदेश IX नियम 6 के तहत प्रतिवादी के खिलाफ एकपक्षीय डिक्री पारित की जाती है।
- यदि कोई पक्ष न्यायालय द्वारा निर्धारित तिथि पर उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायालय उपस्थित होने के लिये सम्मन और नोटिस जारी करेगा।
- सिविल मुकदमे की कार्यवाही के मामले में , यदि वादी उपस्थित था और प्रतिवादी उपस्थित नहीं था, और समन विधिवत जारी किया गया था, तो न्यायालय प्रतिवादी के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है और एक पक्षीय डिक्री पारित कर सकता है।
यदि पार्टियाँ नियत दिन पर उपस्थित होने में विफल रहती हैं (If Parties Fail to Appear on Day Fixed)
- यदि कोई पक्ष नियत दिन पर उपस्थित होने में विफल रहते हैं तो प्रक्रिया आदेश XVII सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908 (CPC) के नियम 2 के तहत उल्लिखित है।
- इसमें उस स्थिति का उल्लेख है, जिसमें किसी भी दिन, जिस दिन मुकदमे की सुनवाई स्थगित की जाती है, पक्षकार या उनमें से कोई भी उपस्थित होने में विफल रहता है।
- ऐसी स्थिति में न्यायालय आदेश IX द्वारा निर्देशित किसी एक तरीके से मुकदमे का निपटान करने के लिये आगे बढ़ सकता है या ऐसा कोई अन्य आदेश दे सकता है जो वह उचित समझे।
- आदेश IX नियम 6 के तहत एक तरीका एकपक्षीय डिक्री पारित करना है।
- आदेश XVII नियम 2 के तहत स्पष्टीकरण में कहा गया है कि न्यायालय के पास उस पक्ष के खिलाफ आगे बढ़ने का विवेक है जिसके साक्ष्य या सबूत का बड़ा हिस्सा पहले ही दर्ज किया जा चुका है।
एकपक्षीय डिक्री के विरुद्ध प्रतिवादी के लिये उपाय (Remedy for Defendant Against Ex-Parte Decree)
- ऐसा कोई भी मामला जिसमें प्रतिवादी के खिलाफ एकतरफा डिक्री पारित की जाती है, वह इसे रद्द करने के लिये सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश IX के नियम 13 के तहत आवेदन दाखिल करने का उपाय चुन सकता है।
- प्रतिवादी इसे रद्द करने के आदेश के लिये उस न्यायालय में आवेदन कर सकता है जिसके द्वारा डिक्री पारित की गई थी।
- यदि न्यायालय निम्नलिखित आधारों पर संतुष्ट हो तो वह उस डिक्री को रद्द करने का आदेश देगी:
- यदि प्रतिवादी न्यायालय को इस बात से संतुष्ट करता है कि समन का क्रियान्वयन ठीक से नहीं से नहीं किया गया है ।
- जब मुकदमा की सुनवाई की जा रही थी तो उसे किसी पर्याप्त कारण से उपस्थित होने से रोका गया।